थोड़ा सुकून भी ढूँढिये जनाब
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मैं तो चाहता हूँ हमेशा मासूम बने रहना
ख्वाईशें तो आज भी बगावत करना चाहती है
आखिर कह ही डाला उसने एक दिन
भूलने की कोशिश करते हो
तेरे शहर तक पहुँच तो जाता
मेरी लिखी हर बात को कोई समझ नहीं पाता
कौन कहता है कि हम झूठ नहीं बोलते
उम्र जाया कर दी लोगों ने
तकलीफ खुद ही कम हो गई
थम के रह जाती है जिंदगी