अपने दुश्मन से बहस करने के लिये उसका अभ्यास
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राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है
सिने पर जो ज़ख्म है सब फूलों के गुच्छे हैं
व्यक्ति की हत्या करना सरल है
मैं एक मानव हूँ और जो कुछ भी मानवता को प्रभावित
जिंदगी तो सिर्फ अपने कंधों पर जी जाती है
अपने दुश्मन से बहस करने के लिये उसका अभ्यास
मेरा धर्म देश की सेवा करना है
यदि बहरों को सुनाना है तो आवाज़ को बहुत
दिल से निकलेगी न मरकर भी वतन की उल्फत
महान साम्राज्य ध्वंस हो जाते हैं पर विचार जिंदा रहते हैं