गांजे मे गंगा बसी चीलम में चार धाम
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ना मैं उच नीच में रहूँ ना ही जात पात में रहूँ
ना पूछो मुझसे मेरी पहचान मैं तो भस्मधारी हूँ
गांजे मे गंगा बसी चीलम में चार धाम
भागना मत मौत से एक एहसान चढ़ा देगी
आँधी तूफान से वो डरते हैं जिनके मन में प्राण बसते हैं
सारा ब्राम्हॉंन्ड झुकता हैं जिसके शरण में
जैसे हनुमानजी के सीने में तुमको सियापति श्री राम मिलेंगे
जब जब लगने लगे डर ले लो नाम दिल से महाकाल का
वह अकेले ही पुरी दुनिया में मुर्दे कि भस्म से नहाते हैं
किसी ने मुझसे कहा इतने ख़ूबसूरत नहीं हो तुम