नव दीप जले नव फूल खिले रोज नई बहार मिले
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या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता
बिन बुलाए भी जहां जाने को जी चाहता है
जगत पालनहार है माँ मुक्ति का धाम है माँ
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके
माँ की ज्योति से नूर मिलता है
माँ दुर्गे माँ अंबे माँ जगदांबे माँ भवानी
सारा जहाँ है जिसकी शरण में
नव दीप जले नव फूल खिले रोज नई बहार मिले
देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परमं सुखम्