खुले आसमान में जमी से बात न करो ज़ी लो ज़िंदगी ख़ुशी का आस न करो
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गुड़ की मिठास पतंगों की आस संक्रांति में मनाओ जम कर उल्लास
दिल में है छायी मस्ती मन में भरी है उमंग उड़ती हैं पतंगें रंग बिरंगी
त्यौहार नहीं होता अपना पराया त्यौहार है वही जिसे सबने मनाया
बंदे हैं हम देश के हम पर किसका ज़ोर मकर संक्रान्ति में उड़े पतंगे चारो ओर
नीले नीले आसमां में उड़ती रंग-बिरंगी पतंगे जैसे नीले नीले सागर में तैरती रंग-बिरंगी मछलियाँ
खुले आसमान में जमी से बात न करो ज़ी लो ज़िंदगी ख़ुशी का आस न करो
सपनों को लेकर मन में उड़ायेंगे पतंग आसमान में
हो आपके जीवन में खुशियाली कभी भी न रहे कोई दुख देने वाली पहेली
ठंड की इस सुबह पड़ेगा हमें नहाना क्योंकि संक्रांति का पर्व कर देगा मौसम सुहाना
तन में मस्ती मन में उमंग चलो आकाश में डाले रंग