आखिर मुझे उसकी कमी क्यों खले
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ढलता हुआ सुरज बताता है
फुर्सत अगर मिलती ढलते सूरज का गम मनाने से
डूबते हुए सूरज की तरह थी वो
दूर कहीं क्षितिज पे सूरज ढल रहा है
आखिर मुझे उसकी कमी क्यों खले
उगते हुए सूरज को सलाम करने वालो
ढलते ढलते जब सूरज बादलों में छिप जाता है
चढ़ते सूरज के पुजारी तो लाखों है
हर दिन उगता है सूरज हर दिन डूबता है सूरज
साझ का वक्त हो और साथ हो तुम्हारा