आखिर मुझे उसकी कमी क्यों खले
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चढ़ते सूरज के पुजारी तो लाखों है
मुझे पता ना चला पर वो चलता रहा
आखिर मुझे उसकी कमी क्यों खले
ढलता हुआ सुरज बताता है
दूर कहीं क्षितिज पे सूरज ढल रहा है
हर दिन उगता है सूरज हर दिन डूबता है सूरज
आज जवानी पर इतरानेवाले कल पछतायेगा
फुर्सत अगर मिलती ढलते सूरज का गम मनाने से
ढलते ढलते जब सूरज बादलों में छिप जाता है
डूबते हुए सूरज की तरह थी वो